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But the Comforter, which is the Holy Ghost, whom the Father will send in my name, he shall teach you all things,
and bring all things to your remembrance, whatsoever I have said unto you. John 14:26


नीतिवचनअध्याय 8
  • 1 क्या बुद्धि नहीं पुकारती है, क्या समझ ऊंचे शब्द से नहीं बोलती है?
  • 2 वह तो ऊंचे स्थानों पर मार्ग की एक ओर, और तिर्मुहानियों में खड़ी होती है;
  • 3 फाटकों के पास नगर के पैठाव में, और द्वारों ही में वह ऊंचे स्वर से कहती है,
  • 4 हे मनुष्यों, मैं तुम को पुकारती हूं, और मेरी बात सब आदमियों के लिये है।
  • 5 हे भोलो, चतुराई सीखो; और हे मूर्खों, अपने मन में समझ लो
  • 6 सुनो, क्योंकि मैं उत्तम बातें कहूंगी, और जब मुंह खोलूंगी, तब उस से सीधी बातें निकलेंगी;
  • 7 क्योंकि मुझ से सच्चाई की बातों का वर्णन होगा; दुष्टता की बातों से मुझ को घृणा आती है॥
  • 8 मेरे मुंह की सब बातें धर्म की होती हैं, उन में से कोई टेढ़ी वा उलट फेर की बात नहीं निकलती है।
  • 9 समझ वाले के लिये वे सब सहज, और ज्ञान के प्राप्त करने वालों के लिये अति सीधी हैं।
  • 10 चान्दी नहीं, मेरी शिक्षा ही को लो, और उत्तम कुन्दन से बढ़ कर ज्ञान को ग्रहण करो।
  • 11 क्योंकि बुद्धि, मूंगे से भी अच्छी है, और सारी मनभावनी वस्तुओं में कोई भी उसके तुल्य नहीं है।
  • 12 मैं जो बुद्धि हूं, सो चतुराई में वास करती हूं, और ज्ञान और विवेक को प्राप्त करती हूं।
  • 13 यहोवा का भय मानना बुराई से बैर रखना है। घमण्ड, अंहकार, और बुरी चाल से, और उलट फेर की बात से भी मैं बैर रखती हूं।
  • 14 उत्तम युक्ति, और खरी बुद्धि मेरी ही है, मैं तो समझ हूं, और पराक्रम भी मेरा है।
  • 15 मेरे ही द्वारा राजा राज्य करते हैं, और अधिकारी धर्म से विचार करते हैं;
  • 16 मेरे ही द्वारा राजा हाकिम और रईस, और पृथ्वी के सब न्यायी शासन करते हैं।
  • 17 जो मुझ से प्रेम रखते हैं, उन से मैं भी प्रेम रखती हूं, और जो मुझ को यत्न से तड़के उठ कर खोजते हैं, वे मुझे पाते हैं।
  • 18 धन और प्रतिष्ठा मेरे पास है, वरन ठहरने वाला धन और धर्म भी हैं।
  • 19 मेरा फल चोखे सोने से, वरन कुन्दन से भी उत्तम है, और मेरी उपज उत्तम चान्दी से अच्छी है।
  • 20 मैं धर्म की बाट में, और न्याय की डगरों के बीच में चलती हूं,
  • 21 जिस से मैं अपने प्रेमियों को परमार्थ के भागी करूं, और उनके भण्डारों को भर दूं।
  • 22 यहोवा ने मुझे काम करने के आरम्भ में, वरन अपने प्राचीनकाल के कामों से भी पहिले उत्पन्न किया।
  • 23 मैं सदा से वरन आदि ही से पृथ्वी की सृष्टि के पहिले ही से ठहराई गई हूं।
  • 24 जब न तो गहिरा सागर था, और न जल के सोते थे तब ही से मैं उत्पन्न हुई।
  • 25 जब पहाड़ वा पहाड़ियां स्थिर न की गई थीं,
  • 26 जब यहोवा ने न तो पृथ्वी और न मैदान, न जगत की धूलि के परमाणु बनाए थे, इन से पहिले मैं उत्पन्न हुई।
  • 27 जब उस ने अकाश को स्थिर किया, तब मैं वहां थी, जब उस ने गहिरे सागर के ऊपर आकाशमण्डल ठहराया,
  • 28 जब उस ने आकाशमण्डल को ऊपर से स्थिर किया, और गहिरे सागर के सोते फूटने लगे,
  • 29 जब उस ने समुद्र का सिवाना ठहराया, कि जल उसकी आज्ञा का उल्लंघन न कर सके, और जब वह पृथ्वी की नेव की डोरी लगाता था,
  • 30 तब मैं कारीगर सी उसके पास थी; और प्रति दिन मैं उसकी प्रसन्नता थी, और हर समय उसके साम्हने आनन्दित रहती थी।
  • 31 मैं उसकी बसाई हुई पृथ्वी से प्रसन्न थी और मेरा सुख मनुष्यों की संगति से होता था॥
  • 32 इसलिये अब हे मेरे पुत्रों, मेरी सुनो; क्या ही धन्य हैं वे जो मेरे मार्ग को पकड़े रहते हैं।
  • 33 शिक्षा को सुनो, और बुद्धिमान हो जाओ, उसके विषय में अनसुनी न करो।
  • 34 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो मेरी सुनता, वरन मेरी डेवढ़ी पर प्रति दिन खड़ा रहता, और मेरे द्वारों के खंभों के पास दृष्टि लगाए रहता है।
  • 35 क्योंकि जो मुझे पाता है, वह जीवन को पाता है, और यहोवा उस से प्रसन्न होता है।
  • 36 परन्तु जो मेरा अपराध करता है, वह अपने ही पर उपद्रव करता है; जितने मुझ से बैर रखते वे मृत्यु से प्रीति रखते हैं॥